एक राहस्यमयी गुफा और उसका सच: इतिहास के आइने में!
मौर्य शासक बिंबिसार ने अपने शासन काल में राजगीर में एक बड़े पहाड़ को काटकर अपने खजाने को छुपाने के लिए गुफा बनाई थी। जिस कारण इस गुफा का नाम पड़ा था सोन भंडार। इस गुफा के बारे में कहा जाता है कि सोने को सहेजने के लिए इस गुफा को बनवाया गया था। पूरी चट्टान को काटकर यहां पर दो बड़े कमरे बनवाए गए थे।
गुफा के पहले कमरे में जहां सिपाहियों के रुकने की व्यवस्था थी। वहीं, दूसरे कमरे में खजाना रखा गया था। दूसरे कमरे को पत्थर की एक बड़ी चट्टान से ढंका गया है। जिसे आजतक कोई नहीं खोल पाया।
अंग्रेजों ने किया था तोप से उड़ाने का प्रयास, हुए थे नाकाम
अंग्रेजों ने इस गुफा को तोप के गोले से उड़ाने की कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें नाकामयाब रहे। आज भी इस गुफा पर उस गोले के निशान देखे जा सकते हैं। अंग्रेजों ने इस गुफा में छिपे खजाने को पाने के लिए यह कोशिश की थी, लेकिन वह जब नाकाम हुए तो वापस लौट गए।
10 मीटर लंबा चट्टान का कमरा मौजूद है यहां पर
सोन भंडार गुफा में अंदर प्रवेश करते ही 10.4 मीटर लंबा चौड़ा और 5.2 मीटर चौड़ा कमरा है। इस कमरे की ऊंचाई लगभग 1.5 मीटर है। यह कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए बनाया गया था। इसी कमरे के दूसरी ओर खाजाने का कमरा है। जो कि एक बड़ी चट्टान से ढंका हुआ है।
शंख लिपि में लिखा है खजाने का कमरा खोलने का रहस्य
मौर्य शासक के समय बनी इस गुफा की एक चट्टान पर शंख लिपि में कुछ लिखा है। इसके संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि इसी शंख लिपि में इस खजाने के कमरे को खोलने का राज लिखा है।
जैन धर्म के भी हैं अवशेष
इस जगह पर जैन धर्म के अवशेष भी देखने को मिलते हैं। यहां पर दूसरी ओर बनी गुफा में 6 जैन धर्म तीर्थंकरों की मूर्तियां भी चट्टान में उकेरी गई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यहां पर जैन धर्म के अनुयायी भी रहे थे।
तीसरी और चौथी शताब्दी में बनी हैं दोनों गुफा
दोनों ही गुफा तीसरी और चौथी शताब्दी में चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। इन गुफाओं के कमरों को पॉलिश किया गया है। इस तरह की गुफा देश में कम पाई जाती हैं।
गुफा के पहले कमरे में जहां सिपाहियों के रुकने की व्यवस्था थी। वहीं, दूसरे कमरे में खजाना रखा गया था। दूसरे कमरे को पत्थर की एक बड़ी चट्टान से ढंका गया है। जिसे आजतक कोई नहीं खोल पाया।
अंग्रेजों ने किया था तोप से उड़ाने का प्रयास, हुए थे नाकाम
अंग्रेजों ने इस गुफा को तोप के गोले से उड़ाने की कोशिश की थी, लेकिन वे इसमें नाकामयाब रहे। आज भी इस गुफा पर उस गोले के निशान देखे जा सकते हैं। अंग्रेजों ने इस गुफा में छिपे खजाने को पाने के लिए यह कोशिश की थी, लेकिन वह जब नाकाम हुए तो वापस लौट गए।
10 मीटर लंबा चट्टान का कमरा मौजूद है यहां पर
सोन भंडार गुफा में अंदर प्रवेश करते ही 10.4 मीटर लंबा चौड़ा और 5.2 मीटर चौड़ा कमरा है। इस कमरे की ऊंचाई लगभग 1.5 मीटर है। यह कमरा खजाने की रक्षा करने वाले सैनिकों के लिए बनाया गया था। इसी कमरे के दूसरी ओर खाजाने का कमरा है। जो कि एक बड़ी चट्टान से ढंका हुआ है।
शंख लिपि में लिखा है खजाने का कमरा खोलने का रहस्य
मौर्य शासक के समय बनी इस गुफा की एक चट्टान पर शंख लिपि में कुछ लिखा है। इसके संबंध में यह मान्यता प्रचलित है कि इसी शंख लिपि में इस खजाने के कमरे को खोलने का राज लिखा है।
जैन धर्म के भी हैं अवशेष
इस जगह पर जैन धर्म के अवशेष भी देखने को मिलते हैं। यहां पर दूसरी ओर बनी गुफा में 6 जैन धर्म तीर्थंकरों की मूर्तियां भी चट्टान में उकेरी गई हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि यहां पर जैन धर्म के अनुयायी भी रहे थे।
तीसरी और चौथी शताब्दी में बनी हैं दोनों गुफा
दोनों ही गुफा तीसरी और चौथी शताब्दी में चट्टानों को काटकर बनाई गई हैं। इन गुफाओं के कमरों को पॉलिश किया गया है। इस तरह की गुफा देश में कम पाई जाती हैं।
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