आज का क्लास: 'का जानते हो समोसा के बारे में'
समोसा खाए हो कभी?
हाँ, पता था ऐसे जीभ लपलपाओगे। खाने के मामले में तो जो है सो की हम बिहारी अव्वल दर्जे।
बात ये था कि हर किलास में किसी न किसी की बैंड तो बजती ही है, आज सोचा समोसे की कहानी हो जाए। कोई पूछ दिया तो वैसे भी ना बता पाओगे तुम लोग।
पता था हमको साफा बौचट हो तुमलोग। केतना भी समझा दो लेकिन दिमाग के जगह किडनी इस्तेमाल करना ना छोड़ोगे।
Street-Food कुछ भी!!
समोसा स्ट्रीट फूड से कंही बढ़कर है। इसके भारत पहुँचने के पीछे कहानिया है, हिस्टोरियंस की थेओरिज हैं।
समोसा खाने के बाद अब तो आपको निश्चित रूप से समझ जाना चाहिए कि किसी चीज़ की पहचान देश की सीमा से तय नहीं होती है।
आप किसी इंसान या जगह या फिर किसी भी चीज पे धर्म, प्रान्त या कुछ भी का टैग लगा के उसकी पहचान तय नहीं कर सकते। कभी नहीं!
(आल द इमेजेज आर प्रॉपर्टी ऑफ़ देअर ओनर। we owe our thanks)
हाँ, पता था ऐसे जीभ लपलपाओगे। खाने के मामले में तो जो है सो की हम बिहारी अव्वल दर्जे।
बात ये था कि हर किलास में किसी न किसी की बैंड तो बजती ही है, आज सोचा समोसे की कहानी हो जाए। कोई पूछ दिया तो वैसे भी ना बता पाओगे तुम लोग।
लिट्टी चोखा के अलावे अगर कोई व्यंजन आपको बिहार के किसी भी कोने में किसी व् दूकान या रेस्टॉरेंट में दिख जाएगा तो वो है समोसा।
वैसे तो समोसे के लिए ये बात पुरे भारत में लागू होती है। अलग अलग रूप में अलग अलग जगह समोसा सदियो से हमारी पेट पूजा का हवन सामग्री रहा है।अब बताओ समोसा आया कँहा से?
पता था हमको साफा बौचट हो तुमलोग। केतना भी समझा दो लेकिन दिमाग के जगह किडनी इस्तेमाल करना ना छोड़ोगे।
Street-Food कुछ भी!!
मतलब दू लाइन अंग्रेजी पढ़ लिए तो हर जगह वही घुसेड़ दोगे।
समोसा स्ट्रीट फूड से कंही बढ़कर है। इसके भारत पहुँचने के पीछे कहानिया है, हिस्टोरियंस की थेओरिज हैं।
समोसा ने भी ग्लोबलाइजेशन का वही रंग दुनिया को दिखाया है जो लिट्टी चोखा ने दिखाया है। गलियो से, ढाबो से निकलकर जैसे लिट्टी चोखा भागलपुर, पटना, मुंगेर, मोतिहारी, दरभंगा, मधुबनी और न जाने कितने शहरो से होते हुए कश्मीर, लॉस एंजेल्स, टोक्यो, बाली, ऑकलैंड और न जाने कँहा कँहा चली गयी, ठीक उसी तरह समोसा भी ईरान से अफ़ग़ानिस्तान होते हुए भारत आ गया।
समोसा खाने के बाद अब तो आपको निश्चित रूप से समझ जाना चाहिए कि किसी चीज़ की पहचान देश की सीमा से तय नहीं होती है।
आप किसी इंसान या जगह या फिर किसी भी चीज पे धर्म, प्रान्त या कुछ भी का टैग लगा के उसकी पहचान तय नहीं कर सकते। कभी नहीं!
कोई नहीं जानता कि इसे पहली बार तिकोना कब बनाया गया लेकिन इतना जरूर पता है कि इसका नाम समोसा फारसी भाषा के 'संबुश्क:' से निकला है।
समोसे का पहली बार ज़िक्र 11वीं सदी में फारसी इतिहासकार अबुल-फज़ल बेहाक़ी की लेखनी में मिलता है।
उन्होंने ग़ज़नवी साम्राज्य के शाही दरबार में पेश की जाने वाली 'नमकीन' चीज़ का ज़िक्र किया है जिसमें कीमा और सूखे मेवे भरे होते थे।
अबुल फजल बेहाकि एक पर्शियन इतिहासकार और लेखक था।
समोसा भारत में मध्य एशिया की पहाड़ियों से गुज़रते हुए पहुंचा जिस क्षेत्र को आज अफ़ग़ानिस्तान कहते हैं।
वैसे तो इसके प्रारूप और बनाने की प्रक्रिया में काफी बदलाव आया। हर प्रान्त में स्वादानुसार और जियोलाजिकल संरचना के आधार पे इसका स्वरुप बदलता गया।
लेकिन समय के साथ जैसे ही समोसा ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान पहुंचा इसमें बहुत बदलाव आया। और जैसा कि भारतीय खानों के विशेषज्ञ पुष्पेश पंत बताते हैं यह 'किसानों का पकवान' बन गया।
लेकिन समय के साथ जैसे ही समोसा ताज़िकिस्तान और उज़्बेकिस्तान पहुंचा इसमें बहुत बदलाव आया। और जैसा कि भारतीय खानों के विशेषज्ञ पुष्पेश पंत बताते हैं यह 'किसानों का पकवान' बन गया।
अब यह एक ज़्यादा कैलोरी वाला पकवान बन गया है.
ख़ास तरह का इसका रूप तो वैसे भी कायम था और इसे तल कर ही बनाया जाता था लेकिन इसके अंदर इस्तेमाल होने वाले सूखे मेवे और फल की जगह बकरे या भेड़ के मीट ने ले ली थी जिसे कटे हुए प्याज और नमक के साथ मिला कर बनाया जाता था।
सदियों के बाद समोसे ने हिंदूकुश के बर्फ़ीले दर्रों से होते हुए भारतीय उपमहाद्वीप तक का सफ़र तय किया।
प्रोफ़ेसर पंत का कहना है, "मेरा मानना है कि समोसा आपको बताता है कि कैसे इस तरह के पकवान हम तक पहुंचे हैं और कैसे भारत ने उन्हें अपनी जरूरत के हिसाब से पूरी तरह से बदलकर अपना बना लिया है।"
भारत में समोसे को यहां के स्वाद के हिसाब से अपनाए जाने के बाद यह दुनिया का पहला 'फ़ास्ट फूड' बन गया।
समोसे में धनिया, काली मिर्च, जीरा, अदरक और पता नहीं क्या-क्या डालकर अंतहीन बदलाव किया जाता रहा है।
इसमें भरी जानी वाली चीज़ भी बदल गई. मांस की जगह सब्जियों ने ले ली।
भारत में अभी जो समोसा खाया जा रहा है, उसकी एक और ही अलग कहानी है।
अभी भारत में आलू के साथ मिर्च और स्वादिष्ट मसाले भरकर समोसे बनाए जाते हैं। सोलहवीं सदी में पुर्तगालियों के आलू लाने के बाद समोसे में इसका इस्तेमाल शुरू हुआ।
तब से समोसे में बदलाव होता जा रहा है. भारत में आप जहां कहीं भी जाएंगे यह आपको अलग ही रूप में मौजूद मिलेगा।
अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग तरह के समोसे मिलते हैं. यहां तक कि एक ही बाज़ार में अलग-अलग दुकानों पर मिलने वाले समोसे के स्वाद में भी अंतर होता है।
कभी-कभी यह इतना बड़ा होता है कि लगता है कि पूरा खाना एक समोसे में ही निपट जाएगा।
समय के साथ समोसा शादियों में होने वाले भोज और पार्टियों का हिस्सा तक बन गया।
मोरक्कन यात्री इब्न बतूता ने मोहम्मद बिन तुग़लक़ के दरबार में होने वाले भव्य भोज में परोसे गए समोसे का जिक्र किया है।
उन्होंने समोसे का वर्णन करते हुए लिखा है कि कीमा और मटर भरा हुआ पतली परत वाली पैस्टी थी।
पंजाब में अक्सर पनीर भरा समोसा मिलता है, वहीं दिल्ली में कई जगह उसमें काजू किशमिश डाले जाते हैं।
इन दिनों मिलने वाले सभी समोसे स्वादिष्ट हों, ऐसा भी नहीं है।
बंगाली लोग समोसे जैसी मिठाई 'लबंग लतिका' बहुत पसंद करते हैं जो कि मावे भरा मीठा समोसा होता है। दिल्ली के एक रेस्तरां में चॉकलेट भरा हुआ समोसा मिलता है।
समोसा बनाने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं।
जो आम तौर पर समोसा है, वो अब भी भूरे रंग का होने तक तल कर ही बनाया जाता है लेकिन कभी-कभी आप कम कैलोरी वाले बेक्ड समोसे भी खा सकते हैं।
प्रोफेसर पुष्पेश पंत बताते हैं कि कुछ शेफ भाप से समोसे पकाने का भी प्रयोग करते हैं लेकिन यह एक भूल है, प्रोफ़ेसर पंत कहते हैं कि समोसे को जब तक तेल में न तला जाए उसमें स्वाद आता ही नहीं है।
और हां, यह भी बहुत साफ़ है कि समोसा का सफर भारत में ही सिर्फ ख़त्म नहीं होता है।
ब्रिटेन के लोग भी समोसा खूब चाव से खाते हैं और भारतीय प्रवासी पिछली कुछ सदियों में दुनिया में जहां कहीं भी गए अपने साथ समोसा ले गए।
इस तरह से ईरानी राजाओं के इस शाही पकवान का आज सभी देशों में लुत्फ उठाया जा रहा है।
एक बात तो तय है कि समोसा दुनिया के किसी कोने में भी बनेगा और उसमें जो कुछ भी भरा जाए उसमें आपको भारतीयता का एहसास होगा।
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(आल द इमेजेज आर प्रॉपर्टी ऑफ़ देअर ओनर। we owe our thanks)
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